अभी दिखा एक शख्स,
आँखों में चश्मा और हाथों में छड़ी थी |
लोग कहते हैं कि वो गुमनाम है |
बताता नहीं अपना नाम है |
किसी रोज भूला था नाम,
अभी तक अनजान है |
किससे पूछे भीड़ में अपना नाम,
उनसे ? जो किसी और के नाम के सहारे हैं !
या उनसे ? जिन्हें नाम से फर्क ही नहीं पड़ा |
अंजान सफ़र में नाम की अहमियत ही क्या है ?
कौन पडतालेगा उसके निशान,
शायद मुनिस्पलिटी के रजिस्टर में दर्ज होगा,
कोई जमीन का टुकड़ा उसके नाम |
उस बेनाम की ढाई गज जमीन,
जिसमें दफ्न होना है उसका अस्तित्व !
हाँ वही अस्तित्व ! जिससे समाज बेफिक्र था !
क्यूँ न हो ?
सब जूझ ही रहे हैं,
अपने अस्तित्व के लिए,
औरों के अस्तित्व को रौंदते हुए !
यही अस्तित्व का संघर्ष जिसमे जीवन उपजा,
समाज बना, जातियां बनी, देश जन्मा !
धरती बटी, रेखाएं खिची, शत्रु पनपा !
राजा बने, सामंत भी , सैनिक, प्रजा !
जो लूटता है घोर वो शासक बना,
जो लुट रहा है खैर उसकी बात भी क्या !
फिर भी उस अस्तित्व में अब क्या बचा ?
जो सिकन्दर नाम था वो भी मिटा !
दौड़ते फिरते है किस कारण ?
आप, मै, हर शख्स क्यूँ अंजान हैं
नाम वालो को मिले कितने सुकून?
क्यूँ नहीं दिखता शिकन बेनाम में ?
सोचता हूँ क्या उसे मै नाम दूं ?
या नाम वालो पे तरस खाता रहूँ ?
-----------सुनील मिश्रा------------
आँखों में चश्मा और हाथों में छड़ी थी |
लोग कहते हैं कि वो गुमनाम है |
बताता नहीं अपना नाम है |
किसी रोज भूला था नाम,
अभी तक अनजान है |
किससे पूछे भीड़ में अपना नाम,
उनसे ? जो किसी और के नाम के सहारे हैं !
या उनसे ? जिन्हें नाम से फर्क ही नहीं पड़ा |
अंजान सफ़र में नाम की अहमियत ही क्या है ?
कौन पडतालेगा उसके निशान,
शायद मुनिस्पलिटी के रजिस्टर में दर्ज होगा,
कोई जमीन का टुकड़ा उसके नाम |
उस बेनाम की ढाई गज जमीन,
जिसमें दफ्न होना है उसका अस्तित्व !
हाँ वही अस्तित्व ! जिससे समाज बेफिक्र था !
क्यूँ न हो ?
सब जूझ ही रहे हैं,
अपने अस्तित्व के लिए,
औरों के अस्तित्व को रौंदते हुए !
यही अस्तित्व का संघर्ष जिसमे जीवन उपजा,
समाज बना, जातियां बनी, देश जन्मा !
धरती बटी, रेखाएं खिची, शत्रु पनपा !
राजा बने, सामंत भी , सैनिक, प्रजा !
जो लूटता है घोर वो शासक बना,
जो लुट रहा है खैर उसकी बात भी क्या !
फिर भी उस अस्तित्व में अब क्या बचा ?
जो सिकन्दर नाम था वो भी मिटा !
दौड़ते फिरते है किस कारण ?
आप, मै, हर शख्स क्यूँ अंजान हैं
नाम वालो को मिले कितने सुकून?
क्यूँ नहीं दिखता शिकन बेनाम में ?
सोचता हूँ क्या उसे मै नाम दूं ?
या नाम वालो पे तरस खाता रहूँ ?
-----------सुनील मिश्रा------------